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Tuesday, December 9, 2025

Sensibility Index.

संवेदन प्रवणता और संवादगम्यता 

Communication Patterns.

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किसी भी प्रकार का सार्थक और सुचारु संवाद संंभव होने के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर ध्यान देना आवश्यक है -

1. कार्य क्षेत्र 

2. योग्यता क्षेत्र 

3. अधिकार क्षेत्र 

4. माध्यम

5. संवेदन प्रवणता

6. संवादगम्यता

7. परिस्थितियाँ, स्थान और समय

अपने अपने कार्य क्षेत्र में हर व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा कम या अधिक दक्ष, कुशल हो सकता है,  इसी प्रकार से उसकी उस क्षेत्र की जानकारी / योग्यता  भी किसी दूसरे व्यक्ति की तुलना में कम या अधिक हो सकती है।

अगला महत्वपूर्ण बिन्दु है माध्यम जो कि भाषा, संस्कृति और सामाजिक शिष्टाचार पर निर्भर होता है। उदाहरण के लिए किसी साहित्यिक रचना का पठन पाठन करते समय जैसी संवादप्रवणता तथा संवादगम्यता अपेक्षित होती है वह उससे बिल्कुल भिन्न तरह की होती है जैसी विज्ञान, गणित, संगीत या तकनीकी विषय का अध्ययन करने हेतु आवश्यक हो सकती है।

अंतिम बिन्दु है - परिस्थितियाँ, स्थान और समय।

किसी से जुड़ने के लिए प्रायः इनमें से एक या अधिक बिन्दु महत्वपूर्ण होते हैं। जैसे किसी संगीतबद्ध रचना को समझ पाने के लिए भिन्न भिन्न तरह से उससे जुड़ पाना होता है। कोई नर्तक या नर्तकी केवल ताल से भी जुड़ाव अनुभव कर थिरकने लग सकते हैं और उन्हें उस रचना के साहित्यिक मूल्य से फिर भी बिल्कुल ही अनभिज्ञ भी हो सकते हैं। दूसरी ओर साहित्यिक रुचि से संपन्न कोई व्यक्ति उसके संगीत पक्ष आदि के बारे में विस्तार से न समझ पाता हो। यह भी हो सकता है कि किसी तीसरे व्यक्ति को भाषा और संगीत दोनों ही अटपटे या अजीब लग रहे हों।

वस्तुओं, व्यक्तियों, विषयों, विचारों आदि से जुड़ना या न जुड़ पाना बहुत हद तक चेतन और अवचेतन स्मृति पर भी निर्भर करता है, मानसिक कल्पित, और अनुभवगत रुचियों, अरुचियों, भयों आदि पर भी।

शायद इन्हीं सब कारणों से एक समय ऐसा भी आता है जब हम न तो किसी व्यक्ति से, न किसी विचार, आदर्श, विषय, कर्म या लक्ष्य से ही जुड़ पाते हैं और हमें केेवल एक खालीपन कचोटता रहता है। तब हम अपने आपको उस खालीपन के अनुभवकर्ता की तरह identify कर लेते हैं। और कोई कभी हमें यह नहीं बतलाता कि जैसे अनुभव मन की वृत्ति है, वैसे ही अनुभवकर्ता भी मन की वृत्ति ही है। और जब हमारा ध्यान इस सच्चाई पर जाता है, तब इस सूत्रों -

तथा दृष्टुः स्वरूपेऽवस्थानम्।।

वृत्तिसारूप्यमितरत्र।।

पर अकस्मात् हमारा ध्यान जा सकता है।

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ujjain, m.p., India
My Prominant Translation-Works Are: 1.अहं ब्रह्मास्मि - श्री निसर्गदत्त महाराज की विश्वप्रसिद्ध महाकृति "I Am That" का हिंदी अनुवाद, चेतना प्रकाशन मुम्बई, ( www.chetana.com ) से प्रकाशित "शिक्षा क्या है ?": श्री जे.कृष्णमूर्ति कृत " J.Krishnamurti: Talks with Students" Varanasi 1954 का "ईश्वर क्या है?" : "On God", दोनों पुस्तकें राजपाल संस, कश्मीरी गेट दिल्ली से प्रकाशित । इसके अतिरिक्त श्री ए.आर. नटराजन कृत, श्री रमण महर्षि के ग्रन्थों "उपदेश-सारः" एवं "सत्‌-दर्शनं" की अंग्रेज़ी टीका का हिंदी अनुवाद, जो Ramana Maharshi Centre for Learning,Bangalore से प्रकाशित हुआ है । I love Translation work. So far I have translated : I Am That (Sri Nisargadatta Maharaj's World Renowned English/Marathi/(in more than 17 + languages of the world) ...Vedanta- Classic in Hindi. J.Krishnamurti's works, : i) Ishwar Kyaa Hai, ii)Shiksha Kya Hai ? And some other Vedant-Classics. I am writing these blogs just as a hobby. It helps improve my skills and expressing-out myself. Thanks for your visit !! Contact : vinayvaidya111@gmail.com