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Tuesday, May 14, 2024

भविष्यकथन

भविष्य की चिन्ता 

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कभी कभी मैं उत्सुकतावश यू-ट्यूब पर बड़े बड़े ज्योतिषियों की भविष्यवाणियों से संबंधित वीडियो देखता हूँ। भौगोलिक और वैश्विक घटनाओं का उनके द्वारा किया गया पूर्व आकलन प्रायः सत्य सिद्ध होता है। वैसे भारतीय ज्योतिष, वेद का उपाङ्ग होने से आकाशीय ग्रह-नक्षत्र और प्रत्येक ही स्थूल और सूक्ष्म पिण्ड में भी चेतन तत्व की विद्यमानता मानता है और मनुष्य भी ऐसा ही विशिष्ट प्राणयुक्त शरीर होने से प्रत्येक दूसरे स्थूल और सूक्ष्म पिण्ड को प्रभावित करता तथा उनसे प्रभावित भी होता है।

यह भौतिकशास्त्र के नियमों के ही अनुसार है। जैसे एक स्थूल पिण्ड दूसरे स्थूल पिण्ड पर गुरुत्वबल का प्रयोग करते हुए उसे आकर्षित करता है, वैसे ही सूक्ष्म चुम्बकीय या विद्युत कण भी परस्पर एक दूसरे को आकर्षित या विकर्षित करते हैं।

जैसे स्थूल भौतिक बल किसी स्थूल पिण्ड को सरल रेखा में रैखिक गति प्रदान करते हैं और उस पिण्ड की स्थैतिक अथवा गतिशील दशा को प्रभावित करते हैं वैसे ही एक से अधिक बल मिलकर संयुक्त होने पर या तो एक ही सदिश मात्रक (vector quantity) का रूप ले लेते हैं या केवल एक युग्म-बल के रूप में उस पिण्ड को इस तरह प्रभावित करते हैं कि वह एक सरल आवर्त गति में गतिशील रहे -

घड़ी का पिण्डलम्ब / पेन्डुलम इसका एक उदाहरण है, जो एक समतल में गतिशील रहता है। इसका दूसरा उदाहरण चक्रीय या वृत्त में होनेवाली वर्तुल गति जो पुनः एक ही समतल में होती है।यही समतल वह समतल है जिसमें तीसरे प्रकार की एक और गति देखी जाती है। जैसे कार के ड्राइविंग व्हील पर दोनों हाथों से नियंत्रण कर उसे गोलाकार दिशा में गतिशील किया जाता है। विशाल और बृहदाकार स्थूल पिण्ड अर्थात् आकाशीय ग्रहों में दो गतियाँ देखी जाती हैं - एक तो सूर्य के चारों ओर परिभ्रमण, और दूसरी अपने ही अक्ष पर घूर्णन । सूर्य भी सतत वेगपूर्वक किसी दिशा में गतिशील होते हुए भी समस्त ग्रहों के साथ एक ही समतल में जैसे जड़ा हुआ है।

वाल्मीकि रामायण में सौर मण्डल को देवलोक कहा जाता है और इसमें विद्यमान सभी ग्रह इसीलिए विशिष्ट "देवता" हैं।

यही देवलोक स्वर्गलोक है। 

भगवान् श्रीराम के रघुकुल में ही उनके एक पूर्वज राजा थे, जिनका नाम था "त्रिशंकु"। वे सशरीर स्वर्गारोहण करने की कामना करते थे।  ऋषि विश्वामित्र ने इस चुनौती को स्वीकार किया और यज्ञ के माध्यम से एक अंतरिक्षयान निर्मित किया जिसमें तीन शंकु थे। उस अंतरिक्ष-यान में बैठकर राजा जब देवलोक / स्वर्गलोक की दिशा में जा रहा था, तो देवताओं ने इस पर आपत्ति की क्योंकि उनके उस समतल में, जिसमें सभी ग्रह स्थूल रूप में गतिशील हैं, कोई भी देहधारी मनुष्य या अन्य प्राणी सशरीर प्रवेश नहीं कर सकता था। तब विश्वामित्र के कोप से डरे हुए देवताओं ने त्रिशंकु के लिए देवमण्डल के समतल से कुछ अंशों के कोण पर स्थान निर्धारित किया। हो सकता है कि खगोलविद जिसे आकाश में त्रिशंकु के नाम से जानते हैं वह ऐसा ही कोई मनुष्य-निर्मित उपग्रह या अंतरिक्ष यान हो, और निकट या सुदूर भविष्य में कभी उस पूरे लोक तक वैज्ञानिक पहुँच पाएँ। हो सकता है कि Aliens वहीं रहते हों और वहीं से हम पर दृष्टि रखते हों!

यदि हम Aliens और त्रिशंकु (उपग्रह / राजा / सभ्यता) के रहस्य का उद्घाटन कर सकें तो वाल्मीकि रामायण की सत्यता और विश्वसनीयता भी प्रमाणित हो सकती है।

मेरे किसी दूसरे ब्लॉग में मैंने वाल्मीकि रामायण के इस प्रसंग का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया है कि जैसे एक ही रस्सी पर कम या अधिक दूरी पर छोटे बड़े पिण्ड बांधकर रस्सी को तेजी से घुमाया जाए तो रस्सी में उत्पन्न तनाव के कारण रस्सी एक ही समतल में गतिशील होती है। इसी प्रकार सूर्य के चारों ओर घूमनेवाले सभी ग्रह एक ही समतल में स्थित हैं उनमें से प्रत्येक पर एक तो युग्मबल कार्य करता है जिससे ग्रह अपने अक्ष पर घूमते है, दूसरा युग्म-बल उस समतल में कार्य करता है जिसमें सभी ग्रह स्थित हैं और उनमें से प्रत्येक ग्रह इसी दूसरे युग्म-बल से सूर्य का चक्कर काटता है। 

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ujjain, m.p., India
My Prominant Translation-Works Are: 1.अहं ब्रह्मास्मि - श्री निसर्गदत्त महाराज की विश्वप्रसिद्ध महाकृति "I Am That" का हिंदी अनुवाद, चेतना प्रकाशन मुम्बई, ( www.chetana.com ) से प्रकाशित "शिक्षा क्या है ?": श्री जे.कृष्णमूर्ति कृत " J.Krishnamurti: Talks with Students" Varanasi 1954 का "ईश्वर क्या है?" : "On God", दोनों पुस्तकें राजपाल संस, कश्मीरी गेट दिल्ली से प्रकाशित । इसके अतिरिक्त श्री ए.आर. नटराजन कृत, श्री रमण महर्षि के ग्रन्थों "उपदेश-सारः" एवं "सत्‌-दर्शनं" की अंग्रेज़ी टीका का हिंदी अनुवाद, जो Ramana Maharshi Centre for Learning,Bangalore से प्रकाशित हुआ है । I love Translation work. So far I have translated : I Am That (Sri Nisargadatta Maharaj's World Renowned English/Marathi/(in more than 17 + languages of the world) ...Vedanta- Classic in Hindi. J.Krishnamurti's works, : i) Ishwar Kyaa Hai, ii)Shiksha Kya Hai ? And some other Vedant-Classics. I am writing these blogs just as a hobby. It helps improve my skills and expressing-out myself. Thanks for your visit !! Contact : vinayvaidya111@gmail.com