The Thought and The Thinker are but two aspects of one and the same phenomenon.
सोचना और सोचनेवाला एक ओर एकमेव घटना के दो पहलू होते हैं। दोनों साथ साथ प्रकट और विलीन होते हैं। स्मृति से उत्पन्न सातत्य (का भ्रम) सोचने और सोचनेवाले के बीच परस्पर पृथक् पृथक होने और सोचनेवाले के स्वतंत्र रूप से अस्तित्वमान होने का आभास पैदा करता है।
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