अब स्मरण नहीं है!
आज की कविता
______________________
**********************
© Vinay Kumar Vaidya,
(vinayvaidya111@gmail.com)
---
यह भी तथ्य है !
--
और यह भी कि, हम कभी तथ्य का सामना नहीं करते.
और सिर्फ़ इसलिए, क्योंकि हम तथ्य को देखते तक नहीं शायद ही कभी हम, उसे जानने का प्रयास कभी करते हैं।
और, जैसे ही, वह हमारे समक्ष अवतरित होता है,
सर्वथा नग्न, अनावृत, अपरिभाषित,
तत्काल ही उस पर एक आवरण फेंक देते हैं,
उसे एक शब्द भी कहने का, मौक़ा तक नहीं देते.
और यद्यपि, तथ्य शब्द का उच्चार तक नहीं करता,
और न ही शब्दों से कुछ कहता हु है ,
उसके पास, फिर भी छिपाने जैसा भी,
कुछ कहाँ होता है, जो कुछ भी वह है,
वह' साक्षात् होता है. -वास्तविकता सदैव प्रकट,
प्रकाश-मात्र, और यदि हम पल भर भी चुप रह सकें,
तो तथ्य के रूप में विदा हो, लौट जाया करता है,
उसी वास्तविकता में, जिसका वह' प्रकाश है.
______________________
**********************
© Vinay Kumar Vaidya,
(vinayvaidya111@gmail.com)
---
यह भी तथ्य है !
--
और यह भी कि, हम कभी तथ्य का सामना नहीं करते.
और सिर्फ़ इसलिए, क्योंकि हम तथ्य को देखते तक नहीं शायद ही कभी हम, उसे जानने का प्रयास कभी करते हैं।
और, जैसे ही, वह हमारे समक्ष अवतरित होता है,
सर्वथा नग्न, अनावृत, अपरिभाषित,
तत्काल ही उस पर एक आवरण फेंक देते हैं,
उसे एक शब्द भी कहने का, मौक़ा तक नहीं देते.
और यद्यपि, तथ्य शब्द का उच्चार तक नहीं करता,
और न ही शब्दों से कुछ कहता हु है ,
उसके पास, फिर भी छिपाने जैसा भी,
कुछ कहाँ होता है, जो कुछ भी वह है,
वह' साक्षात् होता है. -वास्तविकता सदैव प्रकट,
प्रकाश-मात्र, और यदि हम पल भर भी चुप रह सकें,
तो तथ्य के रूप में विदा हो, लौट जाया करता है,
उसी वास्तविकता में, जिसका वह' प्रकाश है.
ले जाता है अपने साथ,हमें भी, अपनी रौ में.
वास्तविकता जैसे कभी नई, या पुरानी नहीं होती,
तथ्य भी वैसे ही, कभी पुराना नहीं होता.
सदा ही नया होता है वह भी, वास्तविकता की तरह!
उसकी ही तरह वह भी, न तो एक, न अनेक
किन्तु हमारा तर्क, और हमारी टिप्पणी,
अकस्मात् ही उसे खंडित कर देती है, बहुत से, विविध,
तथ्य भी वैसे ही, कभी पुराना नहीं होता.
सदा ही नया होता है वह भी, वास्तविकता की तरह!
उसकी ही तरह वह भी, न तो एक, न अनेक
किन्तु हमारा तर्क, और हमारी टिप्पणी,
अकस्मात् ही उसे खंडित कर देती है, बहुत से, विविध,
असंख्य रूप देकर, बाँट देती है, टुकड़े-टुकड़े !
क्या यह आश्चर्य नहीं है, कि कल्पना कैसे तथ्य को,
तत्काल ही नया वस्त्र पहना देती है!
जैसे किसी शव का अंतिम संस्कार करने से पहले,
तत्काल ही नया वस्त्र पहना देती है!
जैसे किसी शव का अंतिम संस्कार करने से पहले,
उस पर डाल दिया जाता है अनसिला बेजोड़ कफन!
व्यवस्था बदल देती है उसे, ले जाती है उसे,
श्मशान में दाह-संस्कार करने के लिए -
अराजक संघर्षपूर्ण संसार में !
जबकि तथ्य का मौन, हमें वास्तविकता से जोड़ देता है.
कल्पना से परे वहाँ उस पूर्व की वास्तविकता में,
हम जिसके आलोक-मात्र हैं.
--
अराजक संघर्षपूर्ण संसार में !
जबकि तथ्य का मौन, हमें वास्तविकता से जोड़ देता है.
कल्पना से परे वहाँ उस पूर्व की वास्तविकता में,
हम जिसके आलोक-मात्र हैं.
--